कल यानि २८ दिसंबर
करीब ग्यारह बजे बस ने गांधी शांति प्रतिष्ठान
के पास छोड़ा। जिसे देखो हर कोई राम लीला मैदान के तरफ बढ़ रहा था ऐतिहासिक छड़ का हिस्सा
बनाने के लिए। ११.२० बजे कई ऐतिहासिक घटनाओं
के गवाह उस मैदान में मौजूद था जहाँ कुछ देर बार दिल्ली के सबसे युवा &
सातवें मुख्यमंत्री
शपथ लेने वाले थे। पूरा रामलीला मैदान आम आदमी से खचा-खच भरा हुआ था। इसके लिए न तो
बसों को किराये पर लाया गया था और न ही रेल गाड़ियों कि बुकिंग की गयी थी लेकिन उमड़ा
हुआ जन सैलाब देख कर अनायास ही टीवी पर देखा हुआ १९४७ और जे पी आंदोलन की तस्वीरें
याद आ गई फर्क बस इतना है कि वो ब्लैक & वाइट तस्वीरे थी और ये रंगीन।
अलग ही जूनून था।
अलग ही उत्साह था। इस तस्वीर ने और
अरविन्द के मंच से किये गए भराष्ट्राचार के खिलाफ शखनाद ने मौजूदा राजनितिक पार्टियों
खासकर बीजेपी में खलबली मचा कर रख दी। भड़ास
तो निकलनी थी तो सो निकली भी गडकरी के मुह
से लेकिन बिना सिर-पैर कि और अब पता चल रहा है अरविन्द का डुलिकेट ढूढ़ा जा रहा है ताकि एक दिल्ली के बड़े होटल में उसका नाट्य रूपांतरण
कि जा सके ।
और आज मुझे इस बात का गर्व है , फक्र महसूस कर रहा हूँ कि मै २०११ अगस्त क्रांति ,२०१२ युवा क्रांति का हिस्सा रहा
हूँ।
बीते सालों के क्रांतिओं और आम आदमिओं के जूनून ने बता
दिया है परिवर्तन हो कर रहेगा।
जय हिन्द, जय आप, जय आम आदमी।