Sunday, April 12, 2009

परिवर्तन की अग्नि तो युवाओं के हाथ में तो है ही....


पूरे विश्व मे देशों की कमान युवाओं के हाथ मे है। लेकिन भारत एक ऐसा देश है जिसकी कमान आज भी बूढों के भरोसे है।उसका मेन कारण है की आज भी युवा भारतीय राजनिति से दूर है। पिछले कूछ वर्षों मे युवाओं क अनुपात बढा़ है।लेकिन इसमें हक़ीकत कितना है ? क्या वास्तव में युवा राजनिति मे आ रहे है।
जी नही! राजनिति के प्रति युवाओं का नज़रिया अच्छा नही है। उनके लिये राजनिति एक 'डर्टी गेम' है । और हो भी क्यों न ! अब ऐसा कौन नेता ऐसा है जिसकी छवि एक अच्छे राजनेता की है। या फिर अपने व्यक्तिगत हितों से उपर उठ कर देशहित या आम लॊंगों के लिये काम करता है। आकड़ो के लिहाज से देखे तो आज देश में क़रीब 54 % युवा हैं और कुल क़रीब 70 करोड़ मतदाता। यानि देश का भाविष्य ही युवाओं के हाथ मे है। इनसब के बावजूद केवल 25% - 30% ही राजनिति मे जाना पसन्द करतें हैं। और क़रीब आज इतने ही % केवल संसद मे है। या फिर न के बराबर।
वास्तविकता भी यहीं है। अगाथा, सचिन से लेकर सन्दीप या फिर उमर अब्दुल्लाह जो आज राजनिति मे सक्रिय हैं सभी को राजनिति विरासत मे मिली है। या फिर कुछ युवा ऐसे हैं जिनकी लोकप्रियता या कुख़्यातपन को राजनितिक पार्टीयों ने भुनाया और उनको संसद के गलियरों तक पहुचाय , जिनका सामाजिक सारोकारों से दूर -दूर तक कोई रिश्ता ही नही है। यहां एक सवाल यह भी है कि क्या केवल लोकप्रिय होना एक अच्छे उम्मीदवार कि परिभाषा हो सकती है? कभी नही लेकिन यह एक कड़वा सत्य है और आज दुषित राजनिति कि मांग भी। आख़िर भारतीय राजनिति के इस काले अध्याय को समाप्त कैसे किया जाय ? क्या चुनाव लडने के लिये न्यूनतम योग्यता होनी चाहिये ? या फिर राजनिति को गोलमा देवी , राबड़ी देवी जैसे कम पढे-लिखे लोग या फिर मुख़्तार अन्सारी,अरुण गवली जैसे आरोपियॊं के लिये राजनिति का प्रवेश द्वार हमेशा के लिये खोल दिये जाने चाहिये। लेकिन एक बत तो है कि जब तक कि राजनिति का चेहरा पूरी तरह से साफ़ नही हो जाता, मुश्किल है कि युवाओं का झुकाव राजनिति कि तरफ़ हो। संजय दत्त , शहाब्बुद्दीन जैसे अपराधियों को चुनाव न लडने कि इजाज़त न देकर सुप्रीम कोर्ट ने ज़रूर एक उम्मीद की किरण दिखायी है। अन्यथा परिवर्तन की अग्नि तो युवओं के हाथ मे तो ही
कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें .
अवधेश कुमार मौर्या, मीडिया स्टूडेंट, जामिया मिल्लिया इस्लामिया
http://www.aapkiawaj.blogspot.com/




1 comment:

चंदन कुमार said...

नहीं, जनाब ऐसी बात नहीं है, युवा आगे आ रहे हैं, लेकिन हां,उन्हें अपनी पकड़ बनाने में थोड़ा वक्त लगेगा. साथ ही जरूरत है, नकारात्मकता को छोड़कड़ चीजों को सही नज़रिए से देखने की।।।।।।।।।।।।