कहां गये हमारे वो नेता……
एक कहावत है हमाम मे सभी नंगे है। कोइ भी दूध का धूला नही है। पहले राजनिति मे ऐसे लोग आते थे जो क्रान्तिकारी थे या वे लोग जिनके पास एक सामाजिक सोच थी, वे देश और देश की ग़रीब जनता के लिये कुछ करना चाहते थे।वो भी एक दौर था आज भी एक दौर है।समय तेजी़ से बद्ला है साथ ही राजनिति का स्वरूप भी। सत्ता के शीर्ष से लेकर नीचले पयदान तक सभी एक रंग मे रंगे हुये हैं। चाहे बात प्रधानमंत्री की हो या लाल कृष्ण आडवाणी की या फिर किसी भी राजनितिक दल के कार्यकर्ता की हो, सभी पर दूषित राजनीति हावी है।
वर्तमान मे नेता होने का मतलब है शाही रुतबा. लोगों के बीच नेता जी का ख़ौफ़, और साथ ही अपराधिक प्रवति का होना भी नेता जी की एक ख़ास पहचान है और राजनीति का मतलब है कौन,किससे अधिक से अधिक से अशब्द या अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर सकता है और एक दूसरे से नीचा दिखा सकता है। आज के नेताओं के बीच इस बात की होड़ चल रही है कि कौन ज़्यादा से ज़्यादा जहरीले, उत्तेजक भाषणों के जरिये जन भावनाओं को भड़का सकता है। राज ठाकरे , वरुन गांधी और आदित्यनाथ जैसे नेता इनके उदारहण भी है। तू तू मैं मैं की इस राजनिति मे याद आती है आज लालबहादुर शास्त्री, जवाहर लाल नेहरु. और अटल बिहारी जैसे नेताओं की। इनमे से मैने केवल अटल जी को बोलते हुये सुना है। उनकी भाषण शैली , बोलने की कला लाजवाब थी। उसका लोगों पर गहरा असर पड़ता था। लोग घण्टों भी खड़े रहकर उनको सुनते थे। लेकिन आज के नेता तालियां तो बटोरते है उनके भाषणों का जनमानस के उपर कोइ भी असर दिखाई नही पड़ता।
इन सब का परिणाम यह हुआ है कि राजनीति का स्तर बहुत तेज़ी से गिरा है।राजनिति का लगातार नैतिक पतन होता जा रहा है यही कारण है कि आज राजनीति को अच्छे नज़रिए से नही देखा जा रहा है। खा़सकर युवा तो कत्तई इसमे नही आना चाहते। इससे राजनिति मे वंशवादी परम्परा को भी बढ़ावा मिल रहा है। इन सब के बीच सवाल यह भी उठता है कि देश के सामाजिक पतन के लिये क्या राजनैतिक पतन ज़िम्मेदार नही है? लेकिन इन सब के बावज़ूद आज ऐसे भी नेता है जो है जो मुदों की बात करते है , ऐसे माहौल मे रहअकर भी अपने कर्तब्यों को नही भूले हैं। उमर अब्दुल्लाह , सचिन पायलट , राहुल गांधी जैसे अनेक नेता है जो जो मौज़ूदा दौर के राजनीति को आइना दिखाने की कोशिश कर रहें है।
इन सब के बीच हमें यह नही भूलना चाहिये कि आख़िरकार राजनीति के मंजिल का रास्ता हमारे ही समाज के गलियारों से होकर गुजरता है।राजअनीति मे भ्रष्टाचार और नेताओं की मौकापरस्ती के लिये केवल नेता ही जिम्मेंदार नही हैं।कहीं न कहीं तो हम भी उसके लिये जिम्मेदार है। अच्छी सोच रखेन रखें और अच्छे नेता चुने।
Awadheh Kumar Maurya
Awadhesh.1987@gmail.com
1 comment:
एक बार मुझे मेरे गुरूदेव ने कहा था, यदि व्यवस्था में बदलाव चाहने वाले यदि उसी सिस्टम के हिमायती हो तो लोगों को कैसा नेता मिलेगा ये हमारे सामने है...............
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