आपकी आवाज़
कलम की ताकत ऐसी ताकत है जो समाज में बिना एक बूँद खून बहाए समाज में क्रांति ला सकती है. लेकिन इसका असर सामने तब आता है जब यह बने 'जनता की आवाज़' यानी "आप की आवाज़ ".
Wednesday, November 14, 2018
साहेब हम भूले नहीं हैं…
Tuesday, November 13, 2018
भारत में फेक न्यूज़ और उसका असर
Saturday, May 21, 2016
...... आखिर कहा जायें यह सब महिलाये!
पिछले तीन दिनों से जंतर मंतर पर कुछ महलायें जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले हैं, सामाजिक कार्यकर्त्ता ब्रजभूषण दुबे के अगुवाई में धरना दे रही हकी और सरकार तक अपनी बात पहुचाने की कोशिश कर रही हैं।
करीब 26 महीने पहले इन महिलाओ के पति जो भारत पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में रहते थे और वही रोजी रोटी के लिये चावल का व्यापार करते थे, कुछ उग्रवादियों ने इनका अपराण कर लिया। तब से लेकर आज तक यह महिलाये दर दर की ठोकरे खा रही है लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
इन लोगों ने स्थानीय प्रशासन से लेकर अपने जिले के विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से गुहार लगायी यहाँ तक कि राष्ट्रीय मानवाधिकार का भी दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई भी रिस्पांस नहीं मिला।
पिछले साल जब इन लोगो ने जंतर मंतर पर धरना दिया था और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलकर अपनी बात कही थी तो उन्होंने इनको आश्वासन दिया था कि "आपके पतियों को उग्रवादियों से मुक्त कराया जायेगा और अगर जरूरत पड़ी तो उन्हें हेलीकाप्टर भेजकर वापस लाया जाऐगा"। लेकिन वह वादा महज हवा हवाई ही साबित हुआ।
मन में तो सवाल उठता है कि आखिर कहा जाये यह महिलाये? कौन सा दरवाजा खटखटाये? किस काम का लंबे चौड़े वादे? किस काम का यह लोकतंत्र और किस काम का नयायपालिका।
क्या पुलिस प्रशासन सिर्फ पैसे वालों की सुनाती है। अगर किसी शख्स के पास पैसे न हो क्या उसे न्याय नहीं मिल सकता है, पुलिस उसकी नहीं सुनेगी या फिर सरकार कोई संज्ञान नहीं लेगी। इनके पास छोटे छोटे बच्चे है, रोजी रोटी का कोई साधन नहीं है।
इतने संवेदनशील मसला होने के बावजूद अभी तक सरकार के कानों पर जू तक नहीं रेंग रहा है। पुलिस प्रशासन और सरकार की यही उदासीनता या तो हथियार उठाने पर मजबूर देती है या फिर ऐसे लोगो जिंदगी जीने की आस छोड़ देते है।
Saturday, March 5, 2016
जेनयू के शोर शराबे में दब गई हरियाणा में घटित महिलाओ के जघन्य घटना!
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में हुये कथित देशविरोधी कार्यक्रम और उससे उपजे विवाद की लपटों में "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" कार्यक्रम की शुरुआत करने वाला हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान हुयी हिंसा, हत्या, लूटपाट और महिलाओ के साथ अमानवीय, बलात्कार की घटना की खबर दब गई या फिर जानबूझकर दबा दी गई।
आखिर इसकी वजह क्या है? हरियाणा की घटना को लेकर न तो आरएसएस की देशभक्ति या फिर राष्ट्रवाद की भावना को ठेस पहुची और न ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस सम्बन्ध में एक बयान देना भी उचित नहीं समझा उलटे उनके राज्य की पुलिस लगातार इस बात से इंकार करती रही कि मुरथल में इस प्रकार की घटना भी हुई जबकि तत्कालीन परिस्थितियाँ चीख चीख कर इस बात की गवाही दे रही थी इस प्रकार के घटना को अंजाम दिया गया था।
क्या यह माना जाय कि इसके पीछे आरएसएस या फिर मनोहर लाल खट्टर की स्त्री विरोधी सोच है या फिर इस घटना की सारी परते खुलने के बाद बीजेपी को देश में राजनितिक तौर पर नुकसान उठाना पड़ सकता था? क्या इस मामले की सच्चाई सामने आने के बाद जाहिर सी बात है जाट समुदाय के लोग फसते और मनोहर लाल खट्टर को उस जाट वोट बैंक को खोने का डर था जिसके उपर सवार होकर सत्ता की शिखर तक पहुचे थे? क्या इस मामले के खुलने के बाद बीजेपी को इस बात का डर था कि आगामी चुनावों में उसे सियासी तौर पर नुकसान हो सकता है?
सबसे दिलचस्प और आश्चर्य की बात रही जहाँ भारत में विपक्षी पार्टियां इस प्रकार के घटना होने की बाँट जोहती रहती है लेकिन इस घटना के घटित होने के बाद भी कांग्रेस और उसके नेता चुप्पी का टेप मुँह पर चिपकाये रहे। क्या कांग्रेस भी कही न कही इस घटना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस घटना में शामिल रही है?
शायद यही वजह रही कि बीजेपी के निचले पायदान के नेता से लेकर शीर्ष तक सभी ने चुप्पी साधे रखी और जेनयू घटना को लेकर सुलगती आग में फूक मरते रहे।
जो भी हो लेकिन आरोपियों को न्याय के कटघरे में लाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी और कर्तव्य भी है।
Saturday, February 20, 2016
राष्ट्रवाद का मतलब है बड़े बड़े झंडे फहराना और दक्षिणपंथी विचारधारा की सोच के करीब महापुरषों की मुर्तिया बनवाना।
अगर इंसान के आयु के एवज में देखा जाय तो हिंदुस्तान बूढ़ा होने के करीब आया लेकिन आज लोगों को बुनियादी सुविधायें मसलन खाना, पानी, रोजगार, बिजली,सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा नहीं मिल पाई है।
कांग्रेस के दस साल के शासन और उसमे हुये घोटाले से जनता त्रस्त हो चुकी थी। लोकसभा चुनाव के पहले यह उम्मीद थी कि बनने वाली आगामी सरकार लोगों को इन सभी समस्याओं से छुटकारा दिलायेगी। इस बीच नरेंद्र मोदी गुजरात में लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बना ली थी। उनकी पहचान एक विकास पुरुष और नीतियों के आधार पर कड़क फैसला लेने वाले की बन गई थी।
आरएसएस की राजनितिक इकाई बीजेपी ने भाजपा के तमाम बड़े और कद्दावर नेता मसलन लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ और अरुण जेटली जैसे राष्ट्रीय नेताओ को दरकिनार कर नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया और उसी के बाद से देश की राजनीती विकास के बदले विचारधारा की लड़ाई में तब्दील ही गई।
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यह मुद्दा उठा कि अगर नेहरू की जगह सरदार बल्लभ भाई पटेल अगर देश के प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर समस्या नहीं होती मतलब साफ है कि चुनाव को नेहरू बनाम पटेल बनाने की कोशिश की गई उसी की फलस्वरूप बीजेपी और मोदी जी ने तय किया कि अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो अहमदबाद में लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्ति बनाई जायेगी जिसमे हज़ारो करोड़ो रूपये लग रहे है।
लेकिन चुनाव के करीब दो साल बाद भी हालात बदले नहीं है। हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय का ही मामला ले लीजिये। विश्वविद्यालय को आतंक का गढ़ बताया जा रहा है और एक खास विचारधारा को कुचलने की कोशिश की जा रही है। जेनयू के छात्रों को देखिये खाकी कुर्ता, पैरों में हवाई चप्पल और एक झोला। यहाँ से पास हुआ छात्र समाज को बदलने के लिये काम करता है जब कि दूसरे विश्वविद्यालयों से पास छात्र और छात्रायें (सभी नहीं) पैसा बनाने के लिये काम करते हैं।
जेनयू अपने आप में एक सोच है, विचारधारा है किसी भी मुद्दे के सभी पहलुओं पर बात करना देशद्रोह कैसे हो सकता है। पूँजीवादी, सामन्तवादी और फाँसीवादी विचारधारा को उखाड़ने की सोच आतंकवादी सोच का पर्याय कैसे हो सकता है। जेनयू में जो कुछ हुआ वह चिंता का विषय है।
और दूसरे भारत सरकार में शिक्षा मंत्री ने सभी विश्वविद्यालाओं को आदेश दिया कि वह अपने कैंपस में तिरंगा फहराये। वह सब तो ठीक है लेकिन क्या महज तिरंगा फहराने से काम चल जायेगा। तिरंगा फहराने और उसके सम्मान का भाव लोगो में कैसे आयेगा और अगर छात्र और छत्राओं के अंदर देशभक्ति की भावना भरनी है तो देश की सभी स्कूलों, कॉलेज और हर शिक्षण संसथान में होना चाहिये।
एक चैनल पर देखा कि जेनयू मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे एक वकील से सवाल किया गया तो उसने कहा "पहले वन्देमातरम का नारा लगाओ, भारत माता की जय बोलो"। उन जनाब को यह भी नहीं पता इस देश में रहने वाला हर नागरिक अपने देश को चूमता है उसे किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।
Tuesday, January 19, 2016
सियासत और इनके रहनुमाओं ने कानून को नपुंसक बना दिया है!
सियासत और इनके रहनुमाओं ने कानून को नपुंसक बना दिया है!
हैदराबाद में कथित तौर पर कुछ दलित छात्रो को हॉस्टल से बाहर निकालने के बाद उनमें से एक छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली। इस मामले में यूनिवर्सिटी के कुलपति और इस घटना में शामिल सांसद की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के बजाय छात्र के ऊपर गंभीर आरोप लगाये जा रहे हैं।
मसलन, छात्र ने बीफ पार्टी का आयोजन किया था। याकूब मेनन के फांसी का विरोध किया था और कैंपस में गुंडा-गर्दी करता था। मतलब बचाव का बेहद बेहूदा तरीका अपनाया जा रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि अगर उस छात्र ने कुछ ऐसा काम किया जिससे किसी नियम कानून का उलंघन हुआ तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की।
इस देश में अगर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले गोडसे की पूजा करने वाले हैं तो याकूब मेनन के फांसी का विरोध करने वाले भी हैं।
लेकिन बचाव का बेहद बेहूदा तरीका अपनाया जा रहा है।
Sunday, January 17, 2016
अरविन्द केजरीवाल के ऊपर स्याही फेंकी!
Odd Even कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री के ऊपर स्याही फेंकी।