खबरों को रफ़्तार देने के चक्कर में समाचार को बना दिया खो-खो और कब्बड्डी का खेल.
शायद दूर-दराज़ के गावों या शहरो के लोगो के इस बात का कतई अंदाज़ा नहीं होगा कि शहरी लाईफ इतनी व्यस्त या भागम-भाग भरी होगी. इस बात का एहसास मुम्बई रेलवे स्टेशनों या फिर दिल्ली के मेट्रो स्टेशनों पर भागती दौड़ती जिंदगी को देख कर लगाया जा सकता है .
लेकिन इन सब से इतर एक और चीज़ है जो इस बात का एहसास कराती है, वो है हमारे न्यूज़ चैनलों में दिखाए जानो वाले खबरों की रफ़्तार. या फिर यूँ कहें कि लोगो की भागती- दौड़ती ज़िन्दगी और उनमे समय के अभाव के नब्ज़ को चैनलों ने पकड़ा. क्योंकि ज्यादातर न्यूज़ चैनलों के प्रोग्राम शहरी दर्शको को फोकस करके बनाये और दिखाए जाते है. पिछले दो सालो में न्यूज़ चैनलों के कंटेंट में ज़रूर सुधार आया है क्योंकि समाचारों से विपरीत दिखाई जाने वाले चीज़े समाचार चैनलों के अस्तित्व को नकार रही थी या उन पर एक सवालिया निशान लगा रही थी.लेकिन चंद महीनो में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वो है न्यूज़ चैनलों में खबरों की रफ़्तार. सभी के सभी चैनल चाहे वो बड़े ब्रांड हो या छोटे चैनल सब के सब खबरों को रफ़्तार देने के चक्कर में पड़े है कुछ वैसे ही जैसे बचपन में हम और आप खो-खो और कब्बड्डी का खेल खेलते थे.
जब कि आज भी मीडिया संस्थानों में समाचारों के सिद्धांत में यही पढाया जाता है एक आईडियल स्टोरी एक से डेढ़ मिनट की होती है. लेकिन कोई चैनल 5 मिनट में पचास तो कोई 15 मिनट में दो सौ खबरें. यानि समाचारों के नाम केवल और केवल हेडलाइने ही बची है.
इसकी शुरुआत सबसे पहले टी वी टुडे नेटवर्क के चैनल तेज ने किया. उसके बाद से इसकी होड़ सी मच गयी. सबसे बड़ी बात यह कि इससे न्यूज़ चैनलों के टी आर पी में इजाफा भी हुआ. और टी आर पी के दौड़ में वो चैनल पीछे जो इस ट्रेंड अपना नहीं सके या फिर अपनाने में देरी कर रहे है. हा ये ज़रूर है कि अभी इंग्लिश इलेक्ट्रानिक मीडिया अभी इससे दूर है.
आज कोई राजधानी या शताब्दी के रफ़्तार से खबरे दिखा रहा है तो कोई बुलेट की रफ़्तार से भी तेज़, तो कोई दुनिया का सबसे तेज बुलेटिन दिखा रहा है. पता नहीं इसके मापने का पैमाना बनाया क्या होगा. बस टीवी स्क्रीन पर उभरते दो चहरे और फटा-फटा खबरे. और अंत में, आप लोग इस आर्टिकल को पढ़ क्या सोच रहे होगे लेकिन मेरा नजरिया अभी भी सकारात्मक है और उस दिन के इंतजार में हूँ जब हम और आप रॉकेट, मिसाईल, ध्वनि और प्रकाश की गति से भी तेज़ रफ़्तार से खबरे देखेगे.
अवधेश कुमार मौर्या,नई दिल्ली,awadhesh.1987@gmail.com
कलम की ताकत ऐसी ताकत है जो समाज में बिना एक बूँद खून बहाए समाज में क्रांति ला सकती है. लेकिन इसका असर सामने तब आता है जब यह बने 'जनता की आवाज़' यानी "आप की आवाज़ ".
Wednesday, April 4, 2012
खबरों को रफ़्तार देने के चक्कर में समाचार को बना दिया खो-खो और कब्बड्डी का खेल.
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