Thursday, November 27, 2008

कितना उचित है लोगों निर्दोष लोगों निशना बनाकर राजनिति करना? ऐसा ही कुछ हो रहा आज कल मुंबई में जहाँ पर राज ठाकरे क्षेत्रियताभाषा को आधार बनाकर निर्दोष लोगों को निशाना बना रहें... इसी विषय पर हमने बात की आज तक पत्रकार रामकिंकर सिंह से.....
-महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है वह उचित है ?
कही से भी यह उचित नही है। सभी पूरे देश में रहने और कमाने का हक़ है।
-लेकिन राज ठाकरे तो कहते हैं की उत्तर भारतीय हक़ छीन रहीं हैं ?
सच पूछिये तो नेताओं को ऐसे मुद्दे को बेवजह उठाते है। ऐसी वहा कोई बात ही नही है। जिस रोजगार काम की बात राज करते ई उस मराठियों का पहले से ही कब्जा है। आख़िर १०० % जॉब पर उत्तर भारतीय तो काम नही कर सकते है।
-तो फिर क्या यह एक राजनितिक हथकंडा है ?
देखिये राजनिति में ऐसे हथकंडे राजनिति चमकाने को लिए अपनाए जाते है। दरअसल १९६० को दशक में बल ठाकरे ने भी कुछ ऐसे ही राजनिति चमकाई थी ।
-तो इसका हल क्या हो ?
इस चीज के लिए जितने राज जिम्मेदार है उतनी ही जीम्मेदार है वहां की सरकार । वहां के प्रशासन को चाहिए कि उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करें और दोषियों को कड़ी सजा का प्रावधान हो ।
वास्तव में भारतीय संविधान में कही भी सीमाओं,भाषा के आधार पर अलगाव या बटवारे का उल्लेख नही है इस बात को हमारे नेताओं को समझाना चाहिए और मुद्दों की राजनिति करनी चाहिए।
अवधेश कुमार मौर्या जामिया मिल्लिया इस्लामिया टीवी जर्नलिज्म

Tuesday, November 25, 2008

युवाओं में हिन्दी बोलने में संकोच क्यों ?



संवैधानिक तौर पर हिन्दी अपनी राज और राष्ट्र भाषा है, लेकिन आज जहाँ पुरी दुनिया अपनी भाषा को बढ़ावा देने पर लगी है वहीं हम अपनी रास्ट्र भाषा को भूलते जा रहें है। आख़िर इसके क्या कारण है । इसी विषय पर हमने बात की जामिया मिल्लिया इस्लामिया क कुछ विद्यार्थियों से .....

साइंस के स्टुडेंट अमित सिंह कहते है की ऐसी बात नही है हमने अपनी भाषा को भुला दिया है चूकिं हमारे सभी सलेबस इंग्लिश में है इसलिए हमें पढ़ना पड़ता है। हिन्दी विभाग के अमृत सिंह का कहना है कि इसके लिए हमारी सरकार जिम्मेदार है जो इसके लिए कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नही है।

राजनित्शास्त्र के स्टुडेंट पवन कुमार कहते है कि आज कल युवाओं में आधिक पढ़े लिखे होने कि ग़लतफ़हमी ने उन्हें इंग्लिश बोलने पर मजबूर किया है। जब कि कॉल सेंटर में कामकरने वाले अलोक का कहना है , इस वैश्वीकरण के दौर में हमरी हिन्दी भाषा रोजगार से नही जुड़ पाई और ये अगर हमें रोजगार नही दे सकती तो फिर हम क्यों इसके पीछे भागें।

कैम्पस में बहुत से स्टुडेंट ऐसे मिले जो इस पर बहुत गंभीर है कहते है हिन्दी भाषा हमारी संस्कृत, हमारी सभ्यता कि पहचान है इसे सजोयें रखना हम सब कि जिम्मेदारी है । इसके लिए हमारी सरकार ऐसे प्रयास करने चाहिए ताकि यह रोजगार से जुड़ सके। कंप्यूटर साइंस क छात्र कहते है कि वह दिन दूर नही जब पुरी दुनिया पर हिन्दी भाषा का एक छत्र राज होगा बस इसके लिए इसे कंप्यूटर कि भाषा बनने कि देरी है।

वास्तव में हिन्दी भाषा का भविष्य तब तक सुरक्षित नही जब तक कि इसके प्रति अपनत्व कि भावना न आए , हमारे राजनीतिज्ञों में राजनितिक इच्छाशक्ति न हो। यह भी जरुरी है कि इसे अपने दनिक और व्यवहारिक जीवन में ज्यादा से ज्यादा उपयोग लायें ।

अवधेश कुमार मौर्या. पोस्ट ग्रजुयेट डिप्लोमा इन टी.वी.जर्नलिज्म

जामिया मिल्लिया इस्लामिया