Saturday, May 21, 2016

...... आखिर कहा जायें यह सब महिलाये!

              पिछले तीन दिनों से जंतर मंतर पर कुछ महलायें जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले हैं, सामाजिक कार्यकर्त्ता ब्रजभूषण दुबे के अगुवाई में धरना दे रही हकी और सरकार तक अपनी बात पहुचाने की कोशिश कर रही हैं।

              करीब 26 महीने पहले इन महिलाओ के पति जो भारत पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में रहते थे और वही रोजी रोटी के लिये चावल का व्यापार करते थे, कुछ उग्रवादियों ने इनका अपराण कर लिया। तब से लेकर आज तक यह महिलाये दर दर की ठोकरे खा रही है लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

              इन लोगों ने स्थानीय प्रशासन से लेकर अपने जिले के विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से गुहार लगायी यहाँ तक कि राष्ट्रीय मानवाधिकार का भी दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई भी रिस्पांस नहीं मिला।

                पिछले साल जब इन लोगो ने जंतर मंतर पर धरना दिया था और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलकर अपनी बात कही थी तो उन्होंने इनको आश्वासन दिया था कि "आपके पतियों को उग्रवादियों से मुक्त कराया जायेगा और अगर जरूरत पड़ी तो उन्हें हेलीकाप्टर भेजकर वापस लाया जाऐगा"। लेकिन वह वादा महज हवा हवाई ही साबित हुआ।

               मन में तो सवाल उठता है कि आखिर कहा जाये यह महिलाये? कौन सा दरवाजा खटखटाये? किस काम का लंबे चौड़े वादे? किस काम का यह लोकतंत्र और किस काम का नयायपालिका।

              क्या पुलिस प्रशासन सिर्फ पैसे वालों की सुनाती है। अगर किसी शख्स के पास पैसे न हो क्या उसे न्याय नहीं मिल सकता है, पुलिस उसकी नहीं सुनेगी या फिर सरकार कोई संज्ञान नहीं लेगी। इनके पास छोटे छोटे बच्चे है, रोजी रोटी का कोई साधन नहीं है।

             इतने संवेदनशील मसला होने के बावजूद अभी तक सरकार के कानों पर जू तक नहीं रेंग रहा है। पुलिस प्रशासन और सरकार की यही उदासीनता या तो हथियार उठाने पर मजबूर देती है या फिर ऐसे लोगो जिंदगी जीने की आस छोड़ देते है।