Wednesday, December 3, 2008

क्या राजनातिक सोच के तौर पर हमारा देश बटवारे की तरफ़ बढ़ रहा है ...

राजधानी सहित देश के प्रमुख राज्यों में विधान सभा चल रहें हैं वही दूसरी तरफ़ आर्थिक राजधानी में आतंकवादी हमला या ऐसा कहा जा सकता है आतंकवादिओं ने ऐसे समय को चुना जब शासन -प्रशासन ,राजनातिक व्यवस्था का ध्यान चुनाओं की तरफ़ था।
पहली बार मुझे ख़ुद एहसास हुआ की हम सभी भारतीय है , हम सभी एक है और अनेक होते हुए भी एक है। जिस प्रकार से मुंबई. डेल्ही और देश के अन्य हिस्सों में लाखों लोग सड़क पर उतरे, आतंकवाद विरोधी नारे लगाये, और सरकार के खिलाफ आक्रोश वक्तय किया । वह अपने आप में एक नई मिसाल है , अनेकता में एकता के परिचायक है। लोगों ने एक स्वर में कहा "भर्स्ट नेताओं को उतार फेको ,हमारी सुरक्षा व्यस्था मजबूत करो और लोकतंत्र के बजाय तानाशाही या रास्ट्रपति शासन लाओ देखने वाली बात यह है की यह तस्वीर उन राज्यों की है जहाँ लोकतंत्र फल -फूल रहा है लोगों का लोकतंत्र में अटूट विश्वास है लेकिन अब स्थिति कुछ अलग है और पिछले दिनों यह दिल्ली में ५८% मतदान से यह देखने को भी मिला। वही दूसरी तरफ़ मणिपुर जम्मू कश्मीर में ७० % से ज्यादा मतदान हुए । जो यह दर्शाता है उन लोगों लोकतंत्र में किस कदर विश्वास बढ़ता जा रहा है। और अब वहां के लोगों ने हिंसा और अलगाववाद को नाकारा है।
तो क्या आप को नही लगता की हमारा देश एक नए तरह के बटवारे की तरफ बढ़ रहा है...?
जरा सोचिये...

Thursday, November 27, 2008

कितना उचित है लोगों निर्दोष लोगों निशना बनाकर राजनिति करना? ऐसा ही कुछ हो रहा आज कल मुंबई में जहाँ पर राज ठाकरे क्षेत्रियताभाषा को आधार बनाकर निर्दोष लोगों को निशाना बना रहें... इसी विषय पर हमने बात की आज तक पत्रकार रामकिंकर सिंह से.....
-महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है वह उचित है ?
कही से भी यह उचित नही है। सभी पूरे देश में रहने और कमाने का हक़ है।
-लेकिन राज ठाकरे तो कहते हैं की उत्तर भारतीय हक़ छीन रहीं हैं ?
सच पूछिये तो नेताओं को ऐसे मुद्दे को बेवजह उठाते है। ऐसी वहा कोई बात ही नही है। जिस रोजगार काम की बात राज करते ई उस मराठियों का पहले से ही कब्जा है। आख़िर १०० % जॉब पर उत्तर भारतीय तो काम नही कर सकते है।
-तो फिर क्या यह एक राजनितिक हथकंडा है ?
देखिये राजनिति में ऐसे हथकंडे राजनिति चमकाने को लिए अपनाए जाते है। दरअसल १९६० को दशक में बल ठाकरे ने भी कुछ ऐसे ही राजनिति चमकाई थी ।
-तो इसका हल क्या हो ?
इस चीज के लिए जितने राज जिम्मेदार है उतनी ही जीम्मेदार है वहां की सरकार । वहां के प्रशासन को चाहिए कि उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करें और दोषियों को कड़ी सजा का प्रावधान हो ।
वास्तव में भारतीय संविधान में कही भी सीमाओं,भाषा के आधार पर अलगाव या बटवारे का उल्लेख नही है इस बात को हमारे नेताओं को समझाना चाहिए और मुद्दों की राजनिति करनी चाहिए।
अवधेश कुमार मौर्या जामिया मिल्लिया इस्लामिया टीवी जर्नलिज्म

Tuesday, November 25, 2008

युवाओं में हिन्दी बोलने में संकोच क्यों ?



संवैधानिक तौर पर हिन्दी अपनी राज और राष्ट्र भाषा है, लेकिन आज जहाँ पुरी दुनिया अपनी भाषा को बढ़ावा देने पर लगी है वहीं हम अपनी रास्ट्र भाषा को भूलते जा रहें है। आख़िर इसके क्या कारण है । इसी विषय पर हमने बात की जामिया मिल्लिया इस्लामिया क कुछ विद्यार्थियों से .....

साइंस के स्टुडेंट अमित सिंह कहते है की ऐसी बात नही है हमने अपनी भाषा को भुला दिया है चूकिं हमारे सभी सलेबस इंग्लिश में है इसलिए हमें पढ़ना पड़ता है। हिन्दी विभाग के अमृत सिंह का कहना है कि इसके लिए हमारी सरकार जिम्मेदार है जो इसके लिए कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नही है।

राजनित्शास्त्र के स्टुडेंट पवन कुमार कहते है कि आज कल युवाओं में आधिक पढ़े लिखे होने कि ग़लतफ़हमी ने उन्हें इंग्लिश बोलने पर मजबूर किया है। जब कि कॉल सेंटर में कामकरने वाले अलोक का कहना है , इस वैश्वीकरण के दौर में हमरी हिन्दी भाषा रोजगार से नही जुड़ पाई और ये अगर हमें रोजगार नही दे सकती तो फिर हम क्यों इसके पीछे भागें।

कैम्पस में बहुत से स्टुडेंट ऐसे मिले जो इस पर बहुत गंभीर है कहते है हिन्दी भाषा हमारी संस्कृत, हमारी सभ्यता कि पहचान है इसे सजोयें रखना हम सब कि जिम्मेदारी है । इसके लिए हमारी सरकार ऐसे प्रयास करने चाहिए ताकि यह रोजगार से जुड़ सके। कंप्यूटर साइंस क छात्र कहते है कि वह दिन दूर नही जब पुरी दुनिया पर हिन्दी भाषा का एक छत्र राज होगा बस इसके लिए इसे कंप्यूटर कि भाषा बनने कि देरी है।

वास्तव में हिन्दी भाषा का भविष्य तब तक सुरक्षित नही जब तक कि इसके प्रति अपनत्व कि भावना न आए , हमारे राजनीतिज्ञों में राजनितिक इच्छाशक्ति न हो। यह भी जरुरी है कि इसे अपने दनिक और व्यवहारिक जीवन में ज्यादा से ज्यादा उपयोग लायें ।

अवधेश कुमार मौर्या. पोस्ट ग्रजुयेट डिप्लोमा इन टी.वी.जर्नलिज्म

जामिया मिल्लिया इस्लामिया

Wednesday, November 12, 2008

जन प्रसार भरती का औचित्य

१२ नवम्बर वो दिन जब महात्मा गाँधी जी ने सार्नाथियों को संबोधित किया था इसी मौके पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। या यूं कहें की सरकारी मीडिया और प्राइवेट मीडिया की कार्यशैली पर सवाल खड़ा किए गए। यानि हर तरह से प्राइवेट मीडिया की आलोचना । लेकिन आज के परिभाषा के अननुसार देखे तो न्यूज़ क्या है .ख़बर वह है जो असमान्य हो । लेकिन आज जो कुछ हो रहा है वह सभी सामान्य है तो मीडिया उसे क्यों कवर करे
आज पुरा समाज संवेदनहीन हो गया है । और जाहिर है मीडियाकर्मी उससे अलग नही । आख़िर हमारी जिम्मेदारी किसके प्रति ?समाज के प्रति या फिर समय के ?

Tuesday, November 11, 2008

क्या डोल रहा है सिंहासन?

विश्व क्रिकेट पर किसका वर्चस्व है. ऑस्ट्रेलिया का, भारत का या फिर किसी और देश का. आजकल ये बहस ख़ूब गर्म है और इसे और हवा दे रहे हैं भारत, ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के क्रिकेटर.जहाँ सहवाग ने कह दिया कि ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत से डरती है तो श्रीलंका के कप्तान महेला जयवर्धने ने कहा कि विश्व क्रिकेट में अब ऑस्ट्रेलिया का वर्चस्व नहीं रहा. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के स्टुअर्ट क्लार्क कहते हैं कि अभी भी ऑस्ट्रेलिया की टीम ही सर्वश्रेष्ठ है.ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई भारतीय टीम ने टेस्ट मैचों में तो विश्व चैम्पियन के नाक में दम किया ही, वनडे मैचों में भी वो ऑस्ट्रेलिया को कड़ी टक्कर दे रही है. वैसे ऑस्ट्रेलिया की टीम कई अहम खिलाड़ियों के संन्यास लेने के बाद उनकी जगह भरने की कोशिश में है और ये उनके लिए आसान नहीं.आपको क्या लगता है? क्या वाक़ई ऑस्ट्रेलिया का सिंहासन डोल रहा है या एक-दो मैचों में हार-जीत का ये अर्थ निकालना उचित नहीं. क्या भारतीय टीम ही विश्व चैम्पियन को चुनौती देने में सबसे आगे है या उसका दावा खोखला है.

दूषित होती भारतीय राजनिति

राजनेताओ को जनता का प्रतिनिधि माना जाता है जनता उन्हें इसलिए चुनती है कि वे हमारे समाज की पिछडेपन और समस्याओं को दूर करें लेकिनयह सोच कर कितना दुःख होता है की आज का हमारा राजनातिक सम्प्रदाय कितना दूषित होता जा रा है चुनाव का टिकट उनके कम के आधार पर दिया जाता था लकिन आज टिकट देने का नजरिया बदल गया है.....आज टिकट बहुबलों को दिया जा रहा है। पासों के बल पर ख़रीदा जा रहा है लेकिन इसका दोषी कौन हमारी राजनितिक व्यवस्था , हमारे नेता या फिर हम ख़ुद जिम्मेदार है....
जरा सोचिये॥ आख़िर आप क्या सोचते है......
अवधेश कुमार "सर्वजीत" न्यू डेल्ही....



















































































Sunday, November 9, 2008

'चरमपंथियों का कोई मज़हब नहीं होता'


इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि पिछले आठ-नौ महीने के दौरान भारतीय मुसलमानों की तरफ़ से चरमपंथी गतिविधियों के ख़िलाफ़ कई बड़े सम्मेलन आयोजित किए लेकिन इसके बाद भी चरमपंथी घटनाएँ कम नहीं हुईं हैं.
ग़ौर करनेवाली बात ये है कि चरमपंथ के ख़िलाफ़ होने वाले इन सम्मेलनों में हिंदू और दूसरे मज़हब के धार्मिक नेता भी शरीक होते रहे हैं. लेकिन चरमपंथ की आग फैल ही रही है.
आख़िर इसकी वजह क्या हैं और कहीं ऐसा तो नहीं कि धार्मिक नेता अपना असर खो चुके हैं.

राष्ट्र ने बापू को श्रद्धांजलि दी

बापू के 137 वें जन्मदिन पर राष्ट्र ने उन्हें याद किया
पूरे भारत में सोमवार को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनके जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई.
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने राजघाट जाकर बापू की समाधि पर फूल माला अर्पित किए.
उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को भी उनके समाधि स्थल विजय घाट पर जाकर श्रद्धांजलि दी.
गाँधी जयंती के अवसर पर राजघाट पर अंतर धार्मिक सभा आयोजित की गई.
इस अवसर पर बापू की विचारधारा के अनुरुप वहाँ लगातार 24 घंटे का चरखा कताई कार्यक्रम आयोजित किया गया है.
राष्ट्रपति के अलावा उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी, विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी और गृह मंत्री शिवराज पाटिल समेत अन्य नेताओं ने बापू और शास्त्री को श्रद्धांजलि दी.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अभी दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर हैं, जहाँ महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया था और इसके सौ साल पूरे होने पर वहाँ कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं.
इस बार गाँधी जयंती से पहले बॉलीवुड फ़िल्म 'लगे रहो मुन्ना भाई' ने गाँधी के आदर्शों पर नई बहस शुरु की है.
फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले संजय दत्त ने गाँधी जयंती के अवसर पर मुंबई में पदयात्रा की.





Wednesday, November 5, 2008

ganga

क्या केवल घोषणा कर देने भर से ही गंगा साफ हो गए गी जब जमीनी स्तर पर कम नही हहोगा तब तक गंगा साफ नही होगी......

क्या गरु का अपमान उचित है

क्या दो लोगों के आपसी विवद को सार्जनिक करना चाहिए ... क्या आज क ज़माने में गुरु का अपमान करना उचित है ....

Saturday, November 1, 2008

राज ठाकरे ने मारी पलटी

अब रास्ट्रीय स्तर पर विरोध के बाद अब राज ठाकरे को समझ आ गया है की हम इस तारा से निरीह लोगों को परेसान नही कर सकते