Wednesday, May 2, 2012

आम आदमी, आन्दोलन और संसद...


 आम आदमी, आन्दोलन और संसद...

बतौर एक आम नागरिक आज-कल जो कुछ हो रहा है उस पर आप सभी क्या सोचते है? आज जो भी अन्ना जी, बाबाराम देव जी  या अरविन्द जी कह रहे क्या उसमे कोई सच्चाई नहीं है? क्या संसद और सांसद की वजह से जनता का वजूद है या जनता की वजह से संसद और सांसद का? क्या जनता सर्वोपरि है या संसद और सांसद. क्या जिस जनता ने अपने शक्तियों को संसद और सांसद में निहित किया है उस जनता को सवाल पूछने या आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है?

सार्वजनिक मंच से जो कुछ भी ये कहा जा रहा है वो केवल उनकी नहीं, ये करोड़ो भारतीयों की है जो इस दूषित राजनितिक और प्रशासनिक व्यवस्था से परेशान हो चुके है. इसकी बानगी पिछले दिनों सड़को पर देखने को मिली. सामाजिक आइना की मूर्ति हमारी फिल्मे भी इसके गवाह है. इस देश के संसद में माननीय अरुण जेटली, कपिल सिब्बल, प्रणब जी जैसे लोग है तो राबड़ी देवी, गोलमा देवी जैसे लोग भी इसी प्रजातान्त्रिक संस्था के हिस्सा रही है. राजनिति या फिर हमारी संवैधानिक संस्थाओ में हत्या, लूट बलात्कार और भ्रष्टाचार के आरोपीओ की कोई कमी नहीं है. क्या ये लोकतंत्र के मंदिर को शर्मिंदा करने के लिए काफी नहीं है?

जो कुछ भी समाज में या देश में ऐसे हालत बने है क्या उसके लिए सभी राजनैतिक पार्टियों के साथ देश के प्रतिनिधि और भ्रष्ट प्रशासनिक व्वयस्था  जिम्मेदार नहीं  है? बिल्कुल! इस देश के तथाकथित माननीय सांसद, उनसे बनी संसद और इनके प्रति जवाबदेह प्रशासनिक व्यवस्था जिम्मेदार है. अगर ऐसी आलोचना सही है तो आलोचना की जानी चाहिए चाहे वो जो कोई  हो.

आम आदमी महगाई, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अव्यवस्था का शिकार है.
सिक्के की तरह सभी चीजो के दो पहलू होते है. अगर समाज में लूट-खसोट है    तो ईमानदारी भी है, झूठ है तो सच भी है, इन्हें पूरी तरह से हटाया नहीं जा सकता है. लेकिन चुनाव सुधार, न्यायिक व्यवस्था में  सुधार, राजनेताओं के लिए एक निश्चित मापदंड जैसी चीजे लाकर सुधार जा सकता है. समाज के लोग अपना कम करे और सरकार अपना. सरकार या माननीय सांसदों द्वारा आम लोगो के नोटिस भेजने के बजाय, भेजे जाने वाले कारणों पर विचार करे तो ये समस्या ही नहीं आयेगी और इससे हमारे संविधान, प्रजातंत्र और संसद की गरिमा बची रहेगी. 


अवधेश कुमार मौर्या
Awadhesh.1987@gmail.com