Wednesday, November 14, 2018

साहेब हम भूले नहीं हैं…



आप थोड़ा सा पीछे जाइये और याद करिए वह दौर शेर हवाई जहाज और मोदी मोदी करती हुयी भीड़ और मोदी मोदी करती हुई भीड़ के बीच वह उत्साह से भरी आवाज।

मसलन सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं झुकने दूंगा मैं देश नहीं मिटने दूंगा।
आपने कोई है भाई जिसको दिल्ली सरकारी नौकरी दी हो.
यह काला धन वापस आना चाहिए.
कांग्रेस भ्रष्टाचार की पहचान बन गई है.
भारत को फिर से विश्वगुरु बनाना है.
यह जवान और किसान कांग्रेस के शासन में सुरक्षित हैं क्या.

अद्भुत चीज थी यह क्योंकि दागी राजनीतिक भ्रष्ट सिस्टम कांग्रेस युवा महिला किसान हर किसी की गुस्से को जुबान देने वाला एक नेता मिल गया था. वह नेता गांव शहर गली मोहल्ला कस्बा घूम घूम कर यही बता रहा था कि व्यवस्था चौपट हो चली है. तो जनादेश वाकई अद्भुत मिला. हर नेता की पोटली खाली कर दी थी उसने मायावती का दलित दौरा खत्म हो गया कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टीकरण खत्म हो गया क्षेत्रीय पार्टियों की सियासत खत्म होने लगी जाति समीकरण धराशाई हो गए और जब संसद के चौखट को छुआ तो लगा लोकतंत्र के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो गई. सब कुछ तो था हर सियासत नतमस्तक थी मौका ऐसा था कि वाकई देश को बचा जा सकता है नीतियों को नए सिरे से मत कर लागू किया जा सकता था बाजार को नए तरीके से खड़ा किया जा सकता था राष्ट्रीय पूजी को मौजूदा जरूरतों के हिसाब से खर्च किया जा सकता था गांव में स्वराज की अवधारणा लागू करने की दिशा में पढ़ा जा सकता था और प्रधानमंत्री बनने के बाद सेंट्रल हॉल में दिए गए पहले भाषण ने इस तरह की उम्मीदें को जगा दिया था.

फिर नीरव मोदी फरार हुआ साथ में मेहुल चौकसी भी फरार हुआयाद कीजिए सेंट्रल हॉल के पहले भाषण नरेंद्र मोदी के वाक्य "बेटा कभी भी मां पर कृपा नहीं कर सकता है वह समर्पित भाव से सिर्फ सेवा कर सकता है".

और वक्त के साथ नजारे बदलते गए मुंबई में नरेंद्र मोदी और देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के साथ तस्वीर ने कई सवालों को जन्म दिया. और उसके बाद देश को 9000 करोड रुपए का चूना लगा कर रही 11 ब्रीफकेस के साथ विजय माल्या दिन के उजाले में भाग और सियासत देखते रही. फिर नीरव मोदी फरार हुआ साथ में मेहुल चौकसी भी फरार हुआ. अब तक जानकारी के मुताबिक देश के 31 अरबपति देश को चुना लगाकर भाग चुके हैं. तो हर डायलॉग बेअसर से लगा. आखिर क्या कहा था मोदी जी ने लोकसभा चुनाव के समय भ्रष्टाचार के संबंध में “न खाऊंगा न खाने दूंगा भाई और बहनों मुझे प्रधानमंत्री नहीं मुझे चौकीदार बनाकर भेजिए मैं देश के खजाने पर कोई भी पंजा नहीं पड़ने दूंगा मुझे चौकीदार बना कर दीजिए”. तो क्या जोर शोर से जो बातें कही गई थी वह देश के नागरिकों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ था क्योंकि ऐसा कोई मुद्दा था ही नहीं जिसे 2014 में सत्ता पाने के लिए उठाया नहीं गया था और ऐसा कोई मुद्दा बचा ही नहीं जिस पर जो कहा गया उस पर कोई असर हुआ.

यह तथ्य उन तस्वीरों को लाते हैं जब यह लग रहा था कि देश में सब कुछ बदल रहा था लेकिन अब उन पर नजर डालिए जो मौजूदा दौर में हैं. मुसलमानों को भारतीय जनता पार्टी वोट बैंक नहीं मानती है लिहाजा उनके विकास या उनके पद से बीजेपी को कोई फर्क नहीं पड़ता है देश में दलितों के साथ क्या हुआ यह सब ने देखा हैदराबाद से लेकर गुजरात तक दलित उत्पीड़न की कहानियां सामने आई. विश्वविद्यालयों को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को प्रयोगशाला बना दिया गया हर साल करोड़ों युवाओं को रोजगार देने का वादा किया गया था लेकिन रोजगार देने की बात आई तो सलाह दी गई की पकौड़े या नौकरी के पीछे भागने की बजाय पान की दुकान लगाएं।

किसानों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है पिछले 4 वर्ष में ही लगभग 50000 किसानों ने आत्महत्या कर लिया इन सब के बावजूद किसानों के उत्थान के लिए सरकार ने जोर-शोर से फसल बीमा योजना शुरू किया लेकिन वह बीमा योजना किसानों को कम उद्योगपति को ज्यादा फायदा पहुंचाने लगी. कृषि विशेषज्ञ पी. साईंनाथ कहा- मोदी सरकार की फसल बीमा योजना राफेल से बड़ा घोटाला है. महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए साईंनाथ ने कहा, "2.80 लाख किसानों ने सोयाबीन की खेती की. एक जिले में किसानों ने 19.2 करोड़ रुपये का भुगतान किया. राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने 77-77 करोड़ रुपये का भुगतान किया. कुल राशि 173 करोड़ रुपये हुई जो रिलायंस बीमा को भुगतान किया गया". उन्होंने कहा, "पूरी फसल खराब हो गई और बीमा कंपनी ने दावों का भुगतान किया. रिलायंस ने एक जिले में 30 करोड़ रुपये का भुगतान किया और उसे शुद्ध लाभ 143 करोड़ रुपये हुआ, जबकि उसका निवेश एक भी रुपया नहीं था".

सड़क से किसानों की आवाज आई संसद से नेताओं की आवाज आई विश्वविद्यालयों से छात्रों की आवाज आए देश के हर चौराहे नुक्कड़ से युवाओं की आवाज आएगी और न्यायपालिका की चौखट से माननीय जजों की.

2014 से लेकर 2017 तक करीब 12700 बैंक फ्रॉड हो गए. जिससे गरीब देश को 17500 हजार करोड़ का चूना लगा. नोटबंदी के बाद पहले 4 महीने में करीब 1500000 लोगों की नौकरियां चली गई. नोटबंदी के बाद पहले 4 महीने में करीब 1500000 लोगों की नौकरियां चली गई लोगों बड़े शहरों से छोटे शहरों की तरफ से पलायन करने के मजबूर हो गए उनका रोजगार खत्म हो गया और उनके सामने रोजी रोटी कमाने और परिवार का पेट भरने की चुनौती पैदा हो गयी. रिजर्व बैंक ने कहा कि नोटबंदी के बाद 16000 करोड रूपया वापस आ गए लेकिन उससे 21000 करोड रुपए के नए नोट छापे पड़े क्योंकि नोटबंदी के बाद 99 परसेंट नोट ओं बैंक में वापस आ गए. इस बीच एक और जिसने जनता की कमर को तोड़ दिया था वह थी डीजल और पेट्रोल की बढ़ती हुई कीमतें चुनाव के पहले कहा गया था ना कि शक्ल में की बहुत तो हुआ पेट्रोल-डीजल के महंगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार. और यह सब तब हुआ जब वह कच्चा तेल अपनी न्यूनतम स्तर पर था. 2014 के बाद से ही हर बरस सरकार दिल पर लगे हुए टैक्स से करीब साढ़े लाख करोड़ करोड रुपए कमाए. आखिर कहीं तो चूक हुई कुछ तो कमी आ रही यही वजह रही कि युवा नौकरी के लिए सड़कों पर उतर आए. इस पर रोक लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने आंकड़े जारी किए कि पिच 14 2014 से लेकर 2017 तक का गरीबो 8:30 लाख नौकरियां दी गई यानी बेरोजगारी दर ३.४१ प्रतिशत से बढ़कर कर 6.23 % पर पहुंच गई. लेकिन रोजगार की दिशा में उचित कदम बढ़ाने के बजाय प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी अध्यक्ष खामोश रहे. बाद में संसद में पार्टी अध्यक्ष ने कहा कि बेरोजगारी रहने से अच्छा है कि युवक को मजदूरी करके पेट पाले युवक पकौड़े बेचकर पेट पाले.

साढ़े चार बरस तक सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही विज्ञान भवन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा. और इसके बाद से संघ विश्व हिंदू परिषद बीजेपी साधु संत समाज अचानक से जाग उठा और राम मंदिर बनाने के प्रति सरकार पर अध्यादेश लाने का दबाव डालने लगा.

सभी मुद्दों को लेकर क्या वास्तव में सरकार गंभीर है हमें यह सोच रहा होगा

Tuesday, November 13, 2018

भारत में फेक न्यूज़ और उसका असर

भारत में फेक न्यूज़ और उसका असर

भारत में फेक न्यूज़ एक बड़ी समस्या बन गई है. आए दिन सोशल मीडिया पर तथ्यों की जांच-पड़ताल किए बिना राष्ट्रवाद, धर्म और आस्था के नाम पर लोग फेक न्यूज़ को शेयर कर रहे हैं.
कुछ दिन पहले राजस्थान में भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने कार्यकर्ताओं से बात करते हुए कहां था "उनके कार्यकर्ता ने एक न्यूज़ को शेयर किया था वह खबर सही नहीं थी लेकिन देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और जमीन पर उसका बहुत बड़ा असर हुआ. तो क्या इसके यह मायने निकाला जाए कि फेक न्यूज़ एक एजेंडा के तहत शेयर किया जा रहा है.
आजादी के 70 साल बाद भी देश में तमाम समस्याएं हैं। मसलन बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, किसान आत्महत्या, प्रदूषण, जनसंख्या, शिक्षा और स्वास्थ्य। लेकिन फिर भी इन समस्याओं पर बात करने के बजाय लोग 70 साल पहले जाकर यह क्यों जाना चाहते हैं कि नेहरू का धर्म क्या था उनका नाम क्या वाकई में जवाहरलाल नेहरू था या मोइन खान.
बीबीसी से बात करते हुए एक्ट्रेस स्वरा भास्कर कहते हैं ''आज जो बात अलग है, वो ये है कि जिस तरह की फ़ेक न्यूज़ की हम बात कर रहे हैं, वो संगठित और प्रायोजित है और इसमें एक एजेंडा छिपा हुआ है" .
अभिनेता प्रकाश राज ने कहा है कि फ़ेक न्यूज़ बहुत पहले से हो रही है, लेकिन अब ये काम संगठित तौर पर हो रहा है और इससे समाज को नुकसान होगा.
सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे पर बेबाक राय रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा" असली ख़बरों के बजाए आप कुछ और पढ़ रहे हैं. क़ाबिल पत्रकारों के हाथ बांध दिए गए हैं. अगर क़ाबिल पत्रकारों का साथ दिया गया तो वो ही इस लोकतंत्र को बदल देंगे. लेकिन भारत का मीडिया, बहुत होश-हवास में, सोच समझकर भारत के लोकतंत्र को बर्बाद कर रहा है. अख़बारों के संपादक, मालिक इस लोकतंत्र को बर्बाद करने में लगे हुए हैं. समझिए किस तरह से हिंदू-मुस्लिम नफ़रत की बातें हो रही हैं."
हलिया वर्षों में भारत में फेक न्यूज़ के आधार पर हिंसा में काफी इजाफा हुआ है दो घटनाएं अहम् है एक राजस्थान की और दूसरी उत्तर प्रदेश की. राजस्थान में अल्पसंख्यक वर्ग के एक शख्स को इस बिना पर मार दिया जाता है कि वह गाय की तस्करी कर रहा था और वही उत्तर प्रदेश में एक अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्ति को शक के आधार पर मार दिया जाता है कि उसने अपने फ्रिज में रखा हुआ था.
इन दोनों घटनाओं में एक बात समान थी वह सोशल मीडिया पर फेक न्यूज के आधार पर जानलेवा भीड़ का इकट्ठा होना.
ऐसा नहीं है फेक न्यूज़ के आधार पर इकट्ठी हुयी भीड़ का शिकार सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बने. महाराष्ट्र में सोशल मीडिया पर बच्चा चोरी होने की अफवाह फैली इसके बाद कई घटनाएं हुई जहां पर कुछ लोगों की सिर्फ इस वजह से हत्या कर दी गई कि वह बच्चों से बात कर रहे थे और वह हिंदू समुदाय के थे.
वर्तमान में सोशल मीडिया पर फैलाए के झूठ और अफवाह से पटना सरकार के लिए चुनौती बनता जा रहा है. वर्तमान में देश में कहीं भी सांप्रदायिक हिंसा होती है तो सरकार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा देती है ताकि सोशल मीडिया पर कोई भी सोशल मीडिया इस बात की है कि किसी भी खबर को शेयर करने से पहले उसके तथ्यों को जांच परख लिया जाए

Saturday, May 21, 2016

...... आखिर कहा जायें यह सब महिलाये!

              पिछले तीन दिनों से जंतर मंतर पर कुछ महलायें जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले हैं, सामाजिक कार्यकर्त्ता ब्रजभूषण दुबे के अगुवाई में धरना दे रही हकी और सरकार तक अपनी बात पहुचाने की कोशिश कर रही हैं।

              करीब 26 महीने पहले इन महिलाओ के पति जो भारत पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में रहते थे और वही रोजी रोटी के लिये चावल का व्यापार करते थे, कुछ उग्रवादियों ने इनका अपराण कर लिया। तब से लेकर आज तक यह महिलाये दर दर की ठोकरे खा रही है लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

              इन लोगों ने स्थानीय प्रशासन से लेकर अपने जिले के विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से गुहार लगायी यहाँ तक कि राष्ट्रीय मानवाधिकार का भी दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई भी रिस्पांस नहीं मिला।

                पिछले साल जब इन लोगो ने जंतर मंतर पर धरना दिया था और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलकर अपनी बात कही थी तो उन्होंने इनको आश्वासन दिया था कि "आपके पतियों को उग्रवादियों से मुक्त कराया जायेगा और अगर जरूरत पड़ी तो उन्हें हेलीकाप्टर भेजकर वापस लाया जाऐगा"। लेकिन वह वादा महज हवा हवाई ही साबित हुआ।

               मन में तो सवाल उठता है कि आखिर कहा जाये यह महिलाये? कौन सा दरवाजा खटखटाये? किस काम का लंबे चौड़े वादे? किस काम का यह लोकतंत्र और किस काम का नयायपालिका।

              क्या पुलिस प्रशासन सिर्फ पैसे वालों की सुनाती है। अगर किसी शख्स के पास पैसे न हो क्या उसे न्याय नहीं मिल सकता है, पुलिस उसकी नहीं सुनेगी या फिर सरकार कोई संज्ञान नहीं लेगी। इनके पास छोटे छोटे बच्चे है, रोजी रोटी का कोई साधन नहीं है।

             इतने संवेदनशील मसला होने के बावजूद अभी तक सरकार के कानों पर जू तक नहीं रेंग रहा है। पुलिस प्रशासन और सरकार की यही उदासीनता या तो हथियार उठाने पर मजबूर देती है या फिर ऐसे लोगो जिंदगी जीने की आस छोड़ देते है।

          

             

Saturday, March 5, 2016

जेनयू के शोर शराबे में दब गई हरियाणा में घटित महिलाओ के जघन्य घटना!

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में हुये कथित देशविरोधी कार्यक्रम और उससे उपजे विवाद की लपटों में "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" कार्यक्रम की शुरुआत करने वाला हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान हुयी हिंसा, हत्या, लूटपाट और महिलाओ के साथ अमानवीय, बलात्कार की घटना की खबर दब गई या फिर जानबूझकर दबा दी गई।

               आखिर इसकी वजह क्या है? हरियाणा की घटना को लेकर न तो आरएसएस की देशभक्ति या फिर राष्ट्रवाद की भावना को ठेस पहुची और न ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस सम्बन्ध में एक बयान देना भी उचित नहीं समझा उलटे उनके राज्य की पुलिस लगातार  इस बात से इंकार करती रही कि मुरथल में इस प्रकार की घटना भी हुई जबकि तत्कालीन परिस्थितियाँ चीख चीख कर इस बात की गवाही दे रही थी इस प्रकार के घटना को अंजाम दिया गया था।

                क्या यह माना जाय कि इसके पीछे आरएसएस या फिर मनोहर लाल खट्टर की स्त्री विरोधी सोच है या फिर इस घटना की सारी परते खुलने के बाद बीजेपी को देश में राजनितिक तौर पर नुकसान उठाना पड़ सकता था? क्या इस मामले की सच्चाई सामने आने के बाद जाहिर सी बात है जाट समुदाय के लोग फसते और मनोहर लाल खट्टर को उस जाट वोट बैंक को खोने का डर था जिसके उपर सवार होकर सत्ता की शिखर तक पहुचे थे? क्या इस मामले के खुलने के बाद बीजेपी को इस बात का डर था कि आगामी चुनावों में उसे सियासी तौर पर नुकसान हो सकता है?

               सबसे दिलचस्प और आश्चर्य की बात रही जहाँ भारत में विपक्षी पार्टियां इस प्रकार के घटना होने की बाँट जोहती रहती है लेकिन इस घटना के घटित होने के बाद भी कांग्रेस और उसके नेता चुप्पी का टेप मुँह पर चिपकाये रहे। क्या कांग्रेस भी कही न कही इस घटना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस घटना में शामिल रही है?

शायद यही वजह रही कि बीजेपी के निचले पायदान के नेता से लेकर शीर्ष तक सभी ने चुप्पी साधे रखी और जेनयू घटना को लेकर सुलगती आग में फूक मरते रहे।
जो भी हो लेकिन आरोपियों को न्याय के कटघरे में लाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी और कर्तव्य भी है। 

               

Saturday, February 20, 2016

आपकी आवाज़: राष्ट्रवाद का मतलब है बड़े बड़े झंडे फहराना और दक्षिणपंथी विचारधारा की सोच के करीब महापुरषों की मुर्तिया बनवाना।

आपकी आवाज़: राष्ट्रवाद का मतलब है बड़े बड़े झंडे फहराना और दक्षिणपंथी विचारधारा की सोच के करीब महापुरषों की मुर्तिया बनवाना।




राष्ट्रवाद का मतलब है बड़े बड़े झंडे फहराना और दक्षिणपंथी विचारधारा की सोच के करीब महापुरषों की मुर्तिया बनवाना।

अगर इंसान के आयु के एवज में देखा जाय तो हिंदुस्तान बूढ़ा होने के करीब आया लेकिन आज लोगों को बुनियादी सुविधायें मसलन खाना, पानी, रोजगार, बिजली,सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा नहीं मिल पाई है।

               कांग्रेस के दस साल के शासन और उसमे हुये घोटाले से जनता त्रस्त हो चुकी थी। लोकसभा चुनाव के पहले यह उम्मीद थी कि बनने वाली आगामी सरकार लोगों को इन सभी समस्याओं से छुटकारा दिलायेगी। इस बीच नरेंद्र मोदी गुजरात में लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बना ली थी। उनकी पहचान एक विकास पुरुष और नीतियों के आधार पर कड़क फैसला लेने वाले की बन गई थी।

                आरएसएस की राजनितिक इकाई बीजेपी ने भाजपा के तमाम बड़े और कद्दावर नेता मसलन लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ और अरुण जेटली जैसे राष्ट्रीय नेताओ को दरकिनार कर नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया और उसी के बाद से देश की राजनीती विकास के बदले विचारधारा की लड़ाई में तब्दील ही गई।

                लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यह मुद्दा उठा कि अगर नेहरू की जगह सरदार बल्लभ भाई पटेल अगर देश के प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर समस्या नहीं होती मतलब साफ है कि चुनाव को नेहरू बनाम पटेल बनाने की कोशिश की गई उसी की फलस्वरूप बीजेपी और मोदी जी ने तय किया कि अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो अहमदबाद में लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्ति बनाई जायेगी जिसमे हज़ारो करोड़ो रूपये लग रहे है।

                 लेकिन चुनाव के करीब दो साल बाद भी हालात बदले नहीं है। हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय का ही मामला ले लीजिये। विश्वविद्यालय को आतंक का गढ़ बताया जा रहा है और एक खास विचारधारा को कुचलने की कोशिश की जा रही है। जेनयू के छात्रों को देखिये खाकी कुर्ता, पैरों में हवाई चप्पल और एक झोला। यहाँ से पास हुआ छात्र समाज को बदलने के लिये काम करता है जब कि दूसरे विश्वविद्यालयों से पास छात्र और छात्रायें (सभी नहीं) पैसा बनाने के लिये काम करते हैं।

               जेनयू अपने आप में एक सोच है, विचारधारा है किसी भी मुद्दे के सभी पहलुओं पर बात करना देशद्रोह कैसे हो सकता है। पूँजीवादी, सामन्तवादी और फाँसीवादी विचारधारा को उखाड़ने की सोच आतंकवादी सोच का पर्याय कैसे हो सकता है। जेनयू में जो कुछ हुआ वह चिंता का विषय है।

               और दूसरे भारत सरकार में शिक्षा मंत्री ने सभी विश्वविद्यालाओं को आदेश दिया कि वह अपने कैंपस में तिरंगा फहराये। वह सब तो ठीक है लेकिन क्या महज तिरंगा फहराने से काम चल जायेगा। तिरंगा फहराने और उसके सम्मान का भाव लोगो में कैसे आयेगा और अगर छात्र और छत्राओं के अंदर देशभक्ति की भावना भरनी है तो देश की सभी स्कूलों, कॉलेज और हर शिक्षण संसथान में होना चाहिये।

                 एक चैनल पर देखा कि जेनयू मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे एक वकील से सवाल किया गया तो उसने कहा "पहले वन्देमातरम का नारा लगाओ, भारत माता की जय बोलो"। उन जनाब को यह भी नहीं पता इस देश में रहने वाला हर नागरिक अपने देश को चूमता है उसे किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।

Tuesday, January 19, 2016

सियासत और इनके रहनुमाओं ने कानून को नपुंसक बना दिया है!

सियासत और इनके रहनुमाओं ने कानून को नपुंसक बना दिया है!

हैदराबाद में कथित तौर पर कुछ दलित छात्रो को हॉस्टल से बाहर निकालने के बाद उनमें से एक छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली। इस मामले में यूनिवर्सिटी के कुलपति और इस घटना में शामिल सांसद की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के बजाय छात्र के ऊपर गंभीर आरोप लगाये जा रहे हैं।

मसलन, छात्र ने बीफ पार्टी का आयोजन किया था। याकूब मेनन के फांसी का विरोध किया था और कैंपस में गुंडा-गर्दी करता था। मतलब बचाव का बेहद बेहूदा तरीका अपनाया जा रहा है।

अब सवाल यह उठता है कि अगर उस छात्र ने कुछ ऐसा काम किया जिससे किसी नियम कानून का उलंघन हुआ तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की।

इस देश में अगर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले गोडसे की पूजा करने वाले हैं तो याकूब मेनन के फांसी का विरोध करने वाले भी हैं।

लेकिन बचाव का बेहद बेहूदा तरीका अपनाया जा रहा है।

Sunday, January 17, 2016

अरविन्द केजरीवाल के ऊपर स्याही फेंकी!

Odd Even कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री के ऊपर स्याही फेंकी।