Thursday, April 23, 2009

हमारी धरती और पर्यावरण- हमारी पृथ्वी प्रकृति की अनमोल धरोहर है.....



क्या वास्तव मे हम अपने शहरो, गांवो , नगरों या फिर एक नयी दुनिया का निर्माण कर रहें हैं। देख्नने या सोचने मे जितना हक़ीकत लगता है वास्तविकता इससे कहीं अलग है। लोग इस पर अलग अलग राय रख सकते हैं । एक तरफ़ हम किसी चीज़ को बनाते हैं तो दुसरी तरफ़ हम विकास कि सम्भावनाओं को ख़त्म कर देते हैं। 


इस भौतिकतावादी युग में लोग बिना सोचे समझे वस्तुओं का उपभोग कर रहें हैं। कल 'earth day' इस बात का एहसास कराने के लिये की हमारी धरती ख़तरे में है। मीडिया ने भी अपने - अपने तरीक़े से लोगों मे एक अलख़ जगाने की कोशिश की। आज के दौर मे अधिकतर लोग जागरुक है लेकिन कर्तब्यनिष्ठ नही। समस्यायें सामने इसलिये भी सामने आती है क्योंकि उनको ये पता नही कि आख़िर शुरुआत कैसे करें? कहां से करें। यह भी हमारे देश का दुर्भाग्य और अजीब विडंबना है कि जो लोग सोचते हैं वो कर नही सकते लेकिन जो करने लायक है (हमारे देश के नेता) वो कभी सोचते नही। इस देश में ऐसे लोगों की कमी नही जो अपने भोग विलासी जीवन मे ही खोये रहते हैं या फिर कुछ ऐसे होते है पानी पीने के लिये हर रोज़ एक नया कुआं खोदते है यानि पूरा का पूरा दिन दो वक़्त की रोटी कमाने मे ही निकल जाता हैं। 

समाज का हर तबका सभी चीज़ों को उपभोग के नज़रिये से देख़ने लगा है शायद यहीं कारण है की आज धरती और प्रकृति अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रही है।


भारत विभिन्न सभ्यताओं , संस्कृतियों और प्राकृतिक विविधताओं से भरा हुआ एक प्राचीन देश है। यहां के जंगल, पहाड़ और इसमें बसने वाले जीव जन्तु हमारी अनमोल धरोहर और प्राकृतिक विरासत है । लोगों ये नही मालूम हमे जीवित रहने के लिये जितना ज़रुरी रोटी , कपड़ा मकान की होती है उससे कहीं ज़्यादा इन सभी प्राकृतिक धरोहरों की ।हमें इन सभी को बचाकर रख्नना है इनके बिना ख़ुद के जीवन की कल्पना मुश्किल है। इसकी शुरुआत खु़द के घरो या पास पड़ोस से कर सकते हैं।



भौतिक वस्तुओं का उपयोग और उपभोग कम से कम करें या फिर अति आवश्यक्ता पर ही करें ।
अधिक से अधिक पेड़ - पौधों को लगायें और साथ ही जंगलों को कट्ने से बचायें।
प्राकृतिक वस्तुओं का सदुपयोग करें न कि उपभोग या फिर दुपर्योग।

Awadhesh kumar maurya
awadhesh.1987@gmail.com