Sunday, November 9, 2008

'चरमपंथियों का कोई मज़हब नहीं होता'


इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि पिछले आठ-नौ महीने के दौरान भारतीय मुसलमानों की तरफ़ से चरमपंथी गतिविधियों के ख़िलाफ़ कई बड़े सम्मेलन आयोजित किए लेकिन इसके बाद भी चरमपंथी घटनाएँ कम नहीं हुईं हैं.
ग़ौर करनेवाली बात ये है कि चरमपंथ के ख़िलाफ़ होने वाले इन सम्मेलनों में हिंदू और दूसरे मज़हब के धार्मिक नेता भी शरीक होते रहे हैं. लेकिन चरमपंथ की आग फैल ही रही है.
आख़िर इसकी वजह क्या हैं और कहीं ऐसा तो नहीं कि धार्मिक नेता अपना असर खो चुके हैं.

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